पिछले 7 लोकसभा चुनाव में 6 बार क्षेत्रीय दलों के पास रही है सत्ता की चाबी, क्या 2014 से अलग होगा 2019?

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लोकसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है और सभी पार्टियां जीत का परचम लहराने के लिए कमर कस चुकी है. लोकसभा चुनाव के पहले अब तक जो सियासी तस्वीर देखने को मिली है, उससे एक बार फिर से इस बात को बल मिला है कि इस चुनाव में भी क्षेत्रीय दलों का बोलबाला होने वाला है. चुनाव दर चुनाव के नतीजे बताते हैं कि क्षेत्रीय दलों ने राष्ट्रीय राजनीति में अपनी जगह लगभग पक्की कर ली है. पिछले सात लोकसभा चुनाव में वाम दलों समेत क्षेत्रीय दलों के खाते में 160 से 210 सीटें आईं और छह बार इनके समर्थन के बिना केंद्र में सरकार नहीं बन सकी. इसमें से 2014 का लोकसभा चुनाव ही सिर्फ अपवाद है जहां बीजेपी की नेतृत्व वाली सरकार प्रचंड बहुमत से बनी.

साल 1991 के चुनाव में कांग्रेस को 244 सीटें मिली और भाजपा ने 120 सीटें जीतीं. वहीं, जनता दल को 69 सीट, माकपा को 35 सीट और भाकपा को 14 सीटें मिलीं. इसी तरह जनता पार्टी को 5 सीट, अन्नाद्रमुक को 11 सीट, शिवसेना को 4 सीट, आरएसपी को 5 सीट, तेदेपा को 13 सीट, झामुमो को 6 सीट, बसपा को 3 सीट, जनता पार्टी को 5 सीटें प्राप्त हुई थीं. इस चुनाव में भी वामदलों समेत क्षेत्रीय दलों को करीब 170 सीटें मिली थीं.

 

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